ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली में उपस्थित सभी नव ग्रहों के प्रभाव के आधार पर व्यक्ति के भाग्योदय के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। कुंडली में ग्रहों की स्थिति अच्छी होना तो आवश्यक है ही, भाग्य से संबंधित ग्रहों का शुभ होना तथा उनकी दशा-महादशा का सही समय पर व्यक्ति के जीवन में आना भी उतना ही आवश्यक होता है अन्यथा कुंडली अच्छी होने पर भी यदि कार्य करने की उम्र शत्रु, बलहीन और नीच ग्रहों की महादशा में ही बीत रही हो तो लाख परिश्रम के बाद भी उसका फल समय बीतने के बाद ही मिलेगा। जन्म कुंडली में ग्रहों के प्रभावों को जानकर हम अपने बिजनेस, करियर, रिश्तों आदि में संतुलन और सफलता बनाये रख सकते हैं। अगर आपके जीवन में कुछ सही नही चल रहा है तो ज्योतिष सलाह से आप आसानी से भाग्योदय कर सकते हैं।
प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली में नवम भाव को भाग्य भाव माना जाता है। व्यक्ति का भाग्य कैसा होगा, कब उतार चढाव आयेंगे और कब किस्मत के सितारे चमकेंगे। किसी भी कुंडली में जातक का भाग्य या दुर्भाग्य उसके नवम भाव से देखा जाता है। जिस भी कुंडली में त्रिकोण भाव (नवम भाव पंचम से पंचम होना) बन रहा हो, ऐसे लोग बेहद भाग्यशाली होते हैं। इन्हें बड़े अवसर भी मिलते हैं और बहुत कम मेहनत करके ये अच्छी सफलता हासिल कर लेते हैं।
ग्रहों के अनुसार भाग्योदय के वर्ष :-
भाग्य भाव में जिस राशि का आधिपत्य होता है, उसके अनुसार ही भाग्योदय का वर्ष तय किया जाता है। जैसे : मेष, लग्न हेतु नवें भाव में धनु राशि आती है। धनु राशि का स्वामी गुरु है। गुरु का भाग्योदय वर्ष 16 वर्ष माना जाता है। अर्थात व्यक्ति को पहला अवसर 16वें वर्ष में मिलेगा। इसके बाद क्रमश: 32वें, 48वें, 64वें वर्ष में परिवर्तन अवश्य आएँगे। इसके अलावा हर महादशा में गुरु का प्रत्यंतर उसके लिए शुभ फलों की प्राप्ति कराएगा। यदि गुरु शुभ स्थिति में हो तो शुभता बढ़ेगी, अशुभ होने पर गुरु का उपाय करें।
सूर्य का भाग्योदय 22वें वर्ष माना जाता है। चन्द्रमा का 24वें वर्ष में, मंगल 28वें वर्ष, बुध 32वें वर्ष में, गुरु 16वें वर्ष में, शुक्र 25वें वर्ष या विवाह के बाद, शनि 36वें वर्ष में भाग्योदय करते हैं। यदि नवें भाव पर राहु-केतु का प्रभाव हो तो क्रमश: 42वें व 44वें वर्ष में भाग्योदय होता है। ग्रहानुसार भाग्योदय के वर्ष जानकर यदि उन वर्षों में विशेष कार्यों की शुरुआत की जाए, तो सफलता जरूर मिलेगी। इसके साथ ही नवम भाव के स्वामी ग्रहों को शुभ व बलि रखने के उपाय भी करने चाहिए। इन ग्रहों की दशा-महादशाएँ व प्रत्यंतर भी विशेष फलदायक होते हैं। अत: इन्हीं की समयावधि के अनुरूप अपनी तैयारियों की रूपरेखा बनाएँ।
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भाग्योदय के उपाय-
ग्रहों की भिन्न-भिन्न स्तिथियाँ हमारे स्वास्थ्य, करियर और रिश्तों में भरपूर असर डालती हैं। जानते हैं कौनसे ग्रह क्या प्रभाव डालते हैं। कुंडली की दशाएं ही हमारे भाग्य का योग बनाने के लिए जिम्मेदार होती हैं । कुंडली के विश्लेषण से हम दुर्दशाओं को पहचान कर उनमें सुधार कर सकते हैं। ज्योतिष शास्त्र में इन विपरीत दशाओं के लिए विशेष उपाय बताये गए हैं।
सबसे पहले देखें कि आपकी कुंडली के नवम भाव में कौन सा ग्रह है, उस ग्रह की मजबूती और प्रसन्न्ता के उपाय करने से भाग्योदय की बाधा दूर होती है।
भाग्य वृद्धि के लिए भाग्य भाव, भाग्येश, भाग्य राशि आदि पर विचार करते हैं और पूर्ण भाग्यवृद्धि में अवरोधक ग्रहों की भी विवेचना करते हैं। साधरणतया इसे ऐसे समझा जा सकता है कि परमात्मा हमारा हाथ पकड़कर भाग्य के चरम तक नहीं पहुंचाता है, बल्कि हमारे जन्मकुंडली के माध्यम से समुचित विचार, अच्छे-बुरे की समझ और हमारी क्षमता के अनुरूप बुद्धि देकर भाग्य जगाने की प्रेरणा देता है। बस, उसके अनुसार कर्म करने की आवश्यकता होती है।
आपकी कुंडली के नवम भाव का स्वामी का नवम भाव में ही उपस्थित हो तो ऐसे जातक का भाग्य उन्नत होता है। ऐसे जातक को उन्नति मिलती है। नवम भाव के स्वामी का रत्न धारण करने से भाग्य में वृद्धि होती है।
कोशिश करें कि सूर्यास्त के बाद ना तो किसी से उधार लें और ना उधार दें। सप्ताह में किसी भी एक दिन अपने ईष्ट देव के मंदिर में दर्शन करने जरूर जाएं।
नवम भाव का स्वामी अगर छठे भाव में उपस्थित हो तो ऐसा व्यक्ति कभी कर्जदार नही होता है। साथ ही शत्रुओं से भी लाभ मिलता है।
नवम भाव का स्वामी यदि चतुर्थ भाव में स्वराशि का हो या उच्च का हो या मित्र राशि का हो तो जातक उसी ग्रह का रत्न धारण करें । ऐसे जातक जनता से जुड़े कार्य जैसे राजनीति, भवन आदि के निर्माण सम्बन्धी व्यवसाय में सफलता मिलती है।
शनि और बृहस्पति की स्थिति नौकरी और करियर को प्रभावित करती है अगर दोनों अच्छे प्रभाव में है तो आपको अच्छी नौकरी मिलेगी। शनि के अशुभ भाव में होने से नौकरी में कई तरह की परेशानियाँ जबकि बृहस्पति बिज़नेस में नुकसान को करवा सकता है।
नवम भाव का स्वामी यदि नीच राशि का हो तो उससे संबंधित वस्तुओं का दान करना चाहिए लेकिन एक बात का विशेष ध्यान रखना चाहिये। यदि नवम भाव का स्वामी स्वराशि या उच्च का हो या नवम भाव में हो तो उस ग्रह से संबंधित वस्तुओं के दान से बचना चाहिए।
नवम भाव अगर गुरु का हो तो ऐसे व्यक्ति को पुखराज धारण करना चाहिए। इस तरह की ग्रह स्थिति वाला जातक धर्म-कर्म और परोपकार के कार्य करने वाला होगा।
राहु या केतु पर्वत से निकलकर शनि या गुरु पर्वत की ओर जाने वाली रेखा को भाग्य रेखा कहते हैं। भाग्य रेखा यदि सरल और स्पष्ट है तो व्यक्ति का भाग्य साथ देगा लेकिन यह रेखा यदि टूटी-फूटी और अस्पष्ट है तो कर्म पर ही निर्भर रहना होगा। यह भी मान्यता है कि यदि यह रेखा कलाई से निकलकर गुरु पर्वत में मिल जाए तो व्यक्ति बहुत ही ज्यादा भाग्यशाली होता है।
रूद्राक्ष की माला से प्रतिदिन ठीक सूर्योदय के समय पूर्व की ओर मुंह करके सूर्य की उपस्थिति में गायत्री मंत्र का जाप करने से भाग्य प्रबल होता है।
नवम भाव में स्वराशि का सूर्य या मंगल उपस्थित हो तो ऐसे जातक प्रगति करते हैं और उच्च पदों पर पहुँचते हैं।
प्रात:काल उठकर माता-पिता, घर के बुजुर्ग, गुरु के चरण स्पर्श करने से भाग्योदय शीघ्र होता है।
यदि नवमेश की महादशा या अंतर्दशा चल रही हो, ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति को सम्बद्ध ग्रह से संबंधित रत्न पहनना चाहिए।
अगर नवम भाव का स्वामी अष्टम भाव में हो, या भाग्य भाव का स्वामी द्वादश में हो, साथ ही अष्टमेश के अशुभ भाव में होने जातक को अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
वृद्धाश्रम, दिव्यांग होम, अनाथालय में समय-समय पर खाने की वस्तुएं, कपड़े दान करते रहें।
शिवजी का अभिषेक रूद्र अष्टाध्यायी से करने से भाग्य की बाधाएं दूर होती हैं।
अगर आप किसी भी प्रकार की ज्योतिष सलाह और समाधान पाना चाहते हैं तो अपनी जन्मपत्री विश्लेषण के लिए अच्छे विशेषज्ञ ज्योतिषी से सुझाव लें। कुछ आसान से उपायों को करके आप अपना भाग्योदय कर सकते हैं।