जो लोग ज्योतिष में रुचि रखते हैं, उन्होने जीवन में कभी न कभी बुधादित्य योग का नाम सुना होगा जिसे वैदिक ज्योतिष में शुभ योगों में गिना जाता है। जानिए बुधादित्य योग क्या है और इस योग के कई पहलू आपके भविष्य को बेहतर ढंग से समझने और राशिफल की भविष्यवाणी करने के लिए हैं।
बुद्धादित्य योग कैसे बनता है?
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, जब भी किसी कुंडली में सूर्य और बुध संयुक्त रूप से स्थित होते हैं, तो वे बुधादित्य योग बनाते हैं। इन दोनों ग्रहों के बीच परस्पर मित्रता होती है और ये मिलकर जातक को बहुत ही शुभ फल देते हैं।
बुद्ध आदित्य योग के शुभ फल
बुधादित्य योग व्यक्ति को बौद्धिक क्षमता, संचार कौशल, नेतृत्व कौशल, सम्मान और कई अन्य विशेषताएं प्रदान करता है। पद और प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है। हर कोई उसकी प्रतिभा की सराहना करता है और वह व्यक्ति सबसे कुशल और प्रभावी लोगों में गिना जाता है।
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क्या बुद्धादित्य योग वास्तव में एक असाधारण योग है?
सूर्य और बुध आमतौर पर एक-दूसरे के करीब होते हैं/सूर्य-बुध की युति, जिसके कारण लगभग 70-80% कुंडली में बुधादित्य योग बनता है। अत: बुधादित्य योग को असाधारण योगों की सूची में रखना अतिशयोक्ति होगी। जिनकी जन्म कुंडली में बुधादित्य योग होता है उन्हें जीवन में अन्य लोगों की तुलना में अधिक सफलता और बौद्धिक क्षमता प्राप्त होती है।
आइए जानते हैं किन परिस्थितियों में बुधादित्य योग पूर्ण शुभ फल देता है और किन परिस्थितियों में यह केवल नाम मात्र का रहता है:
बुद्ध आदित्य योग के शुभ होने की मान्य शर्तें:
कुंडली में सूर्य और बुध दोनों का शुभ स्थिति में होना आवश्यक है; यदि दोनों में से कोई एक भी कुंडली में अशुभ स्थिति में हो तो यह योग पूर्ण फल नहीं देगा।
कुंडली के केंद्र और त्रिकोण भावों में बुधादित्य योग बनना चाहिए, जहां ये शुभ माने जाते हैं।
भले ही शुभ भावों में बुधादित्य योग बनते हों, लेकिन यदि सूर्य और बुध दोनों या इनमें से कोई एक कमजोर हो तो भी वे शुभ योग नहीं बना पाते हैं।
सूर्य से निकटता के कारण यदि बुध अस्त हो जाए तो यह योग पूर्ण फल नहीं देता है।
सूर्य-बुध की युति किन परिस्थितियों में नकारात्मक परिणाम दे सकती है?
यदि कुंडली के तीनों भावों में से किसी एक भाव में अर्थात 6, 8 या 12 में बुधादित्य योग बनता है।
तुला राशि में सूर्य और बुध की युति से बुधादित्य योग बनता है, जहां सूर्य को नीच का माना जाता है।
मीन राशि में भी यह योग इतना प्रबल नहीं होता क्योंकि वहां बुध ग्रह को नीच का माना जाता है। यदि बुध इस योग को सूक्ष्म अवस्था में बनाता है तो शुभ के स्थान पर अशुभ फल प्राप्त होते हैं। इसलिए किसी भी योग को केवल शुभ कह देने मात्र से वह योग शुभ नहीं हो जाता और उसके साथ कुंडली के अनेक तथ्यों की चर्चा करना आवश्यक है। एक अनुभवी ज्योतिषी ही सभी तथ्यों की जांच करने के बाद व्यक्ति को सही निर्णय दे सकता है।
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